Preface
प्रज्ञा पुराण के इस तीसरे खंड में एक ऐसे प्रसंग को लिया गया है, जो हमारे दैनंदिन जीवन का अंग है, जिसकी उपेक्षा के कारण आज चारों ओर कलह- विग्रह खड़े दृष्टिगोचर होते हैं ।। गृहस्थ जीवन, सह जीवन, पारिवारिकता की धुरी पर ही इस विश्व परिवार का समग्र ढाँचा विनिर्मित है ।। मनुष्य जीवन की यह अवधि ऐसी है, जिस पर यदि सर्वाधिक ध्यान दिया जा सके, तो मानव में देवत्व एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण के द्विविध उद्देश्य भली- भांति पूरे होते रह सकते हैं ।। सतयुग के मूल में यही "वसुधैव कुटुम्बकम्" का दर्शन समाहित नजर आता है ।।
परिवार संस्था के विभिन्न पक्षों यथा दांपत्य जीवन, गृहस्थ दायित्व, नारी, शिशु, वृद्धजन, सुसंस्कारिता संवर्द्धन एवं अंत में विश्व परिवार को इस खंड में कथा- उपाख्यानों एवं दृष्टान्तों के माध्यम से सुग्राह्य ढंग से प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है ।। सभी परिवारों में पढ़ी- पढ़ाई जाने वाली गीता- उपनिषद् सार के रूप में इसे समझा जा सकता है ।।
Table of content
प्राक्कथन
प्रथम अध्याय- परिवार-व्यवस्था प्रकरण
द्वितीय अध्याय- गृहस्थ-जीवन प्रकरण
तृतीय अध्याय- नारी-माहात्म्य प्रकरण
चतुर्थ अध्याय- शिशु-निर्माण प्रकरण
पंचम अध्याय- वृद्धजन माहात्म्य प्रकरण
षष्ठ अध्याय- सुसंस्कारिता-संवर्द्धन प्रकरण
सप्तम अध्याय- विश्व-परिवार प्रकरण
वंदना परिशिष्ट
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
268 |
Dimensions |
18.5X24.2 cm |