Preface
मित्रता विशुद्ध हृदय की अभिव्यक्ति है । उसमें छल, कपट या मोह भावना नहीं, मैत्री कर्त्तव्यपालन की शिक्षा देने वाली उत्कृष्ट भावना है । अत: सामाजिक जीवन में उसकी विशेष प्रतिष्ठा है । मित्रता अपनी आत्मा को विकसित करने का पुण्य साधन है । जिसके हृदय में मैत्री भावना विराजमान रहती है उसके हृदय में प्रेम, दया, सहानुभूति, करुणा आदि दैवी गुणों का विकास होता रहता है और उस मनुष्य के जीवन में सुख-संपदाओं की कोई कमी नहीं रहती ।
जिसने मैत्री भावनाएँ प्राप्त कर लीं, उसके लिए संसार परिवार हो गया । स्वामी रामतीर्थ अमेरिका की यात्रा कर रहे थे । उनके पास अपने शरीर और उस पर पड़े हुए थोड़े से वस्त्रों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था । किसी सज्जन ने उनसे पूछा- "आपका अमेरिका में कोई संबंधी नहीं है, आपके पास धन भी नहीं है, वहाँ किस तरह निर्वाह करेंगे' “राम” ने आगंतुक की ओर देखकर कहा-"मेरा एक मित्र है ।' वह कौन है ? उस व्यक्ति ने फिर पूछा । आप हैं वह मित्र, जिनके यहाँ मुझे सारी सुविधाएँ मिल जाएँगी और सचमुच “राम” की वाणी, उनकी आत्मीयता का कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह व्यक्ति स्वामी रामतीर्थ का घनिष्ठ मित्र बन गया ।
Author |
Pt Shriram sharma acharya |
Edition |
2012 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
120X182X10 mm |