Preface
माँ वात्सल्यवश छोड नहीं सकती, उसे इस बात का मोह है कि बच्चा बड़ा होकर घर-गृहस्थी चलायेगा, धन कमायेगा, नाती-पोतों का सुख मिलेगा और मेरे अंतःकरण में धर्म, जाति और संस्कृति की रक्षा का सवाल घूमता है । उसके लिए स्वाधीन होने की आवश्यकता है । समाज-सेवा के लिए यदि अब भी कोई ज्वलंत ज्ञान-ज्योति लेकर सामने नहीं आता, तो हमारी वैदिक संस्कूति की रक्षा कैसे होगी? हे प्रभो! हे परमात्मन्! मुझे बल दो, बुद्धि दो, शक्ति दो, ज्ञान दो और दिशा दो, ताकि पीड़ित मानवता और उत्पीडित सत्य एवं धर्म को विनाश से बचा सकूँ ,प्रकाश दे सकूँ ।
यह प्रश्न एक बालक के मन में आज कई दिन से प्रखर वेग के साथ घूम रहे हैं । बच्चे ने कई बार माँ से आज्ञा माँगी-माँ मुझे समाज-सेवा के लिए उन्मुक्त कर दो । माँ ने उत्तर दिया-बेटा, अभी तो तू छोटा है, अज्ञानी है । अभी तेरी उम्र ही क्या हुई है ? ब्याह-शादी हो, फिर बच्चे हों, मेरी तरह बुड्ढा हो, तब समाज-सेवा भी कर लेना ।
नहीं माँ! बुड्ढे हो जाने पर शक्ति थक जाती है, उत्साह मंद पड़ जाता है, तब सेवा कार्य नहीं, आत्म कल्याण की साधना हो सकती है । पर आज तो अपने धर्म, जातीय गौरव और पितामह ऋषियों के ज्ञान की सुरक्षा का प्रश्न है, माँ, वह कार्य अभी पूरा हो सकता है । तू मुझे उन्मुक्त कर । सैकडो, लाखों माताओं की रक्षा, बालकों को अज्ञान और आडंबर के महापाप से बचाने के लिए यदि तुझे अपने बेटे का बलिदान करना पड़े, तो क्या तुझे प्रसन्नता नहीं होगी ?
Table of content
1. जगदगुरु शंकाराचार्य
2. वैदिक-धर्म के पुनरुद्धारक -
3. संक्षिप्त जीवन परिचय
4. शिक्षा-दीक्षा
5. देश की तत्कालीन सामाजिक व धार्मिक स्थिति
6. बौद्ध धर्म
7. साधना के लिए प्रस्थान
8. साधना और विद्याध्ययन
9. आध्यात्मिक अनास्थाओं का उन्मूलन
10. संगठन और सांस्कृतिक एकता के प्रयास
11. शरीरमांद्य खलु धर्म की साधनम
12. सरस्वती मंदिर का उध्दार
Author |
pt. shri ram sharma acharya |
Edition |
2013 |
Publication |
yug nirman yojana vistar trust |
Publisher |
yug nirman Press, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121X181X3 mm |