Preface
भाव-संवेदना रूपी गंगोत्री के सूख जाने पर व्यक्ति निष्ठुर बनता चला जाता है। आज का सबसे बड़ा दुर्भिक्ष इन्हीं भावनाओं के क्षेत्र का है। जब भी अवतारी चेतना आई है, उसने एक ही कार्य किया-अंदर से उस गंगोत्री के प्रवाह के अवरोध को हटाना एवं सृजन-प्रयोजनों में उसे नियोजित करना। कुछ कथानकों द्वारा व दृष्टांतों के माध्यम से इस तथ्य को भली−भाँति समझा जा सकता है।
देवर्षि नारद एवं वेदव्यास के वार्तालाप के एक तथ्य से स्पष्ट होता है कि मानवीय गरिमा का उदय जब भी होता है, सबसे पहले भावचेतना का जागरण होता है। तभी वह ईश्वर-पुत्र की गरिमामय भूमिका निभा पाता है। चैतन्य जैसे अंतर्दृष्टि-संपन्न महापुरुष भी शास्त्र-तर्क मीमांसा के युग में इसी चिंतन को दे गए। भाव श्रद्धा के प्रकाश में मनुष्यता जो खो गई है, पुन: पाई जा सकती है। पीतांबरा मीरा जीवन भर करुणा विस्तार का, ममत्व का ही संदेश देती रहीं। जब संकल्प जागता है तो अशोक जैसा निष्ठुर भी बदल जाता है- चंड अशोक से अशोक महान् बन जाता है। जीसस का जीवन करुणा के जन-जन तक विस्तार का संदेश देता है। मिस्टर गाँधी इसी भाव-संवेदना के जागरण से एक घटना मात्र से महात्मा गाँधी बन गए-जीवन भर आधी धोती पहनकर एक पराधीन राष्ट्र को स्वतंत्र करने में सक्षम हुए। ठक्कर बापा के जीवन में भी यही क्रान्ति आई। वस्तुत: अवतारी चेतना जब भी सक्रिय होती है, इसी रूप में व्यक्ति को बेचैन कर उसके अंतराल को आमूलचूल बदल डालती है।
Table of content
1. वेदव्यास की अंतर्व्यथा
2. देवर्षि का सत्परामर्श
3. अंतर्दृष्टि जागी-चैतन्य हो गए
4. जगी संवेदना ने नारी चेतना को झकझोरा
5. सक्रिय समर्पण कैसा हो ?
6. संकल्प जागा तो निष्ठुर भी बदला
7. संवेदना चैन से नहीं बैठने देती
8. जब अंत: में लौ जली तो
9. संवेदना की दिव्य दृष्टि
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |