Preface
ईश्वर छोटी- मोटी भेंट- पूजाओं या गुणगान से प्रसन्न नहीं होता। ऐसी प्रकृति तो क्षुद्र लोगों की होती है। ईश्वर तो न्यायनिष्ठ और विवेकवान है। व्यक्तित्त्व में आदर्शवादिता का समावेश होने पर जो गरिमा उभरती है, उसी के आधार पर वह प्रसन्न होता और अनुग्रह बरसाता है।
प्रतीक पूजा की अनेक विधियाँ हैं, उन सभी का उद्देश्य एक ही है, मनुष्य के विकारों को हटाकर, संस्कारों को उभारकर, दैवी अनुग्रह के अनुकूल बनाना।
साधना से सिद्धि का सिद्धान्त सर्वमान्य है। प्रश्न है- साधना किसकी की जाय? उत्तर है- जीवन को ही देवता मानकर चला जाय। यह इस हाथ दे, उस हाथ ले का क्रम है। इसी आधार पर आत्मसन्तोष, लोक सम्मान और देव अनुग्रह जैसे अमूल्य अनुदान प्राप्त होते हैं।
Table of content
1. अध्यात्म तत्त्वज्ञान का मर्म जीवन साधना
2. त्रिविध प्रयोगों का संगम-समागम
3. त्रिविध भवबंधन एवं उनसे मुक्ति
4. सार्थक, सुलभ एवं समग्र साधना
5. व्यावहारिक साधना के चार पक्ष
6. जीवन साधना के सुनिश्चित सूत्र
7. साप्ताहिक और अर्द्ध वार्षिक साधनाएँ
8. आराधना और ज्ञानयज्ञ
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |