Preface
चौबीस अक्षरों का गायत्री महामंत्र भारतीय संस्कृति के वाङ्मय का नाभिक कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। यह संसार का सबसे छोटा एवं एक समग्र धर्मशास्त्र है। यदि कभी भारत जगद्गुरु- चक्रवर्ती रहा है तो उसके मूल में इसी की भूमिका रही है। गायत्री मंत्र का तत्त्वज्ञान कुछ ऐसी उत्कृष्टता अपने अन्दर समाए है कि उसे हृदयंगम कर जीवनचर्या में समाविष्ट कर लेने से जीवन परिष्कृत होता चला जाता है। वेद, जो हमारे आदिग्रन्थ हैं, उनका सारतत्त्व गायत्री मंत्र की व्याख्या में पाया जा सकता है।
गायत्री त्रिपदा है। उद्गम एक होते हुए भी उसके साथ तीन दिशाधाराएँ जुड़ती हैं- (१) सविता के भर्ग- तेजस् का वरण, परिष्कृत प्रतिभा- शौर्य व साहस। (२) देवत्व का वरण, देव व्यक्तित्व से जुड़ने वाली गौरव- गरिमा को अंतराल में धारण करना। (३) मात्र अपनी ही नहीं, सारे समूह, समाज व संसार में वृद्धि की प्रेरणा उभरना।
गायत्री की पूजा- उपासना और जीवन- साधना यदि सच्चे अर्थों में की गई हो तो उसकी ऋद्धि- सिद्धियाँ स्वर्ग और मुक्ति के रूप में निरंतर साधक के अंतराल में उभरती रहती हैं। ऐसा साधक जहाँ भी रहता है, वहाँ अपनी विशिष्टताओं के बलबूते स्वर्गीय वातावरण बना लेता है। जहाँ शिखा- सूत्र का गायत्री से अविच्छिन्न संबंध है, वहीं गायत्री का पूरक है- यज्ञ। दोनों ही संस्कृति के आधारस्तंभ हैं। अपौरुषेय स्तर पर अवतरित गायत्री मंत्र नूतन सृष्टिनिर्माण में सक्षम है एवं उसी का सामूहिक जप- उच्चारण प्रयोग हो पाया है। गायत्री परिवार द्वारा संचालित इस महापुरुषार्थ की पूर्णाहुति २००० में संपन्न हो रही है। विशिष्ट उपासना हेतु सभी को युगतीर्थ शान्तिकुञ्ज का आमंत्रण है।
Table of content
1. आद्यशक्ति गायत्री की समर्थ साधना
2. गायत्री और सावित्री का उद्भव
3. त्रिपदा गायत्री-तीन धाराओं का संगम
4. शक्ति केन्द्रों का उद्दीपन-शब्द शक्ति
5. शरीर की विभिन्न देव-शक्तियों का जागरण
6. यज्ञोपवीत के रूप में गायत्री की अवधारणा
7. नौ सद्गुणों की अभिवृद्धि ही गायत्री-सिद्धि
8. गायत्री का तत्त्वदर्शन और भौतिक उपलब्धियाँ
9. चौबीस अक्षरों का शक्तिपुंज
10. शिखा-सूत्र और गायत्री मंत्र सभी के लिए
11. यज्ञ और गायत्री एक दूसरे के पूरक
12. एक आध्यात्मिक प्रयोग
13. आत्मशोधन, साधना का एक अनिवार्य चरण
14. उपासना, विधान और तत्त्वदर्शन
15. युगतीर्थ में साधना का विशेष महत्त्व
16. संस्कारों की सुलभ व्यवस्था
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistrar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |