Preface
बीसवीं सदी का अंत आते- आते समय सचमुच बदल गया है। कभी संवेदनाएँ इतनी समर्थता प्रकट करती थीं कि मिट्टी के द्रोणाचार्य एकलव्य को धनुष विद्या में प्रवीण- पारंगत कर दिया करते थे। मीरा के कृष्ण उसके बुलाते ही साथ नृत्य करने के लिए आ पहुँचते थे। गान्धारी ने पतिव्रत भावना से प्रेरित होकर आँखों में पट्टी बाँध ली थी और आँखों में इतना प्रभाव भर लिया था कि दृष्टिपात करते ही दुर्योधन का शरीर अष्ट- धातु का हो गया था। तब शाप- वरदान भी शस्त्र प्रहारों और बहुमूल्य उपहारों जैसा काम करते थे। वह भाव- संवेदनाओं का चमत्कार था। उसे एक सच्चाई के रूप में देखा और हर कसौटी पर सही पाया जाता था।
अब भौतिक जगत ही सब कुछ रह गया है। आत्मा तिरोहित हो गई। शरीर और विलास- वैभव ही सब कुछ बनकर रह गए हैं। यह प्रत्यक्षवाद है। जो बाजीगरों की तरह हाथों में देखा और दिखाया जा सके वही सच और जिसके लिए गहराई में उतरना पड़े, परिणाम के लिए प्रतीक्षा करनी पड़े, वह झूठ। आत्मा दिखाई नहीं देती। परमात्मा को भी अमुक शरीर धारण किए, अमुक स्थान पर बैठा हुआ और अमुक हलचलें करते नहीं देखा जाता इसलिए उन दोनों की ही मान्यता समाप्त कर दी गई।
Table of content
1. परिवर्तन के महान क्षण
2. विज्ञान और प्रत्यक्षवाद ने क्या सचमुच हमें सुखी बनाया है?
3. नीतिरहित भौतिकवाद से उपजी दुर्गति
4. भौतिकवाद की उलटबाँसियाँ
5. असमंजस की स्थिति और समाधान
6. लेखक का निजी अनुभव
7. त्रिधा भक्ति एवं उसकी अद्भुत सिद्धि
8. सच्चे अध्यात्मवाद में निहित विलक्षण शक्ति
9. भक्ति से जुड़ी शक्ति
10. आश्वासन एवं अनुरोध
11. हमारी भविष्यवाणी
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |