Preface
आयुर्वद अथवा किसी भी चिकित्सा शास्त्र के अध्ययन के लिए शरीर रचना का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। चिकित्सा में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रथम और आवश्यक सोपान शरीर विज्ञान है। इस ज्ञान के बिना चिकित्सा, शल्य, शालाक्य, कौमारभृत्य आदि किसी भी आयुर्वेद के अंग का अध्ययन संभव नहीं। चिकित्सा के प्रमुख दो वर्ग है-
(१) काय चिकित्सा और (२) शल्य चिकित्सा वर्ग। सर्वप्रथम चिकित्सकों को शरीर विषय का प्रत्यक्ष ज्ञान होना आवश्यक है। इसी आशय से महर्षि आत्रेय का यह कथन सर्वथा सत्य है कि-
शरीरं सर्व सर्वदा वेद यो भिषक्।
आयुर्वेद सकात्स्येन वेद लोक सुखप्रदम्॥
संसार के रोग रुपी दु:ख को हरण करने वाला आयुर्वेदीय हर्त चिकित्सक वही बन सकता है, जिसने शरीर के अंग -प्रत्यगों की स्थिति, उनकी परिभाषा, अंग-प्रत्यगों के परस्पर संबंध, क्रियात्मक शरीर एवं दोषात्मक शरीर आदि शरीर(शरीर संबंधी) का प्रत्यक्ष कर्माभ्यास द्वारा अध्ययन किया है।
Table of content
1. शरीर-परिचय
2. कोषाणु (सेल)
3. मूलधातु
4. आयुर्वेद का भौतिक-रासायनिक सिद्धांत
5. प्रमाण एवं संख्या शारीरम
6. शरीर के अंग अवयव
7. रक्त
8. मांसादि धातुएँ
9. पुरुष प्रजनन तंत्र
10. उपधातु एवं स्त्री प्रजनन
11. त्रिदोष परिचय
12. श्वसन यंत्र
13. नाड़ी संस्थान
14. आहार
15. आहार-पाचन
16. ताप-शारीरिक तापक्रम
17. मूत्रवह संस्थान
Author |
Brahmavarchasva |
Edition |
2011 |
Publication |
Shree Vedmata Gayatri Trust(TMD) |
Publisher |
Brahmavarchas |
Page Length |
192 |
Dimensions |
141mmX200mmX10mm |