Preface
वर्तमान समय में मृतात्मा की सद्गति के लिए सात्विक दान-पुण्य के शास्त्रीय विधान के बजाय लोगों में मृतकभोज की ऐसी प्रथा का प्रचलन हो गया है जो प्राचीन या नवीन किसी सिद्धांत के अनुकूल नहीं है और जिससे मृतक की सद्गति का कुछ भी सम्बन्ध नहीं माना जा सकता। ये मृतक भोज प्रायः बड़ी-बड़ी दावतों के रूप में होते हैं जिनमे एक एक हज़ार, पांच पांच सौ तक सजातीय व्यक्ति और परिचित ईष्ट मित्र पूरी मिठाई पकवान खाने को लाए जाते हैं। उस अवसर पर ऐसा जान पड़ता है। मानो इस घर में कोई बड़ा हर्षोत्सव है, जिसके उपलक्ष्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को खिलाया-पिलाया जा रहा है। भारतवर्ष के अन्य प्रांतों में तो ऐसे भोजों का रिवाज कम है। परन्तु राजस्थान, पश्चिमी यू० पी० मालवा, मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में इनका विशेष जोर-शोर देखा जा सकता है इस भू भाग की छोटी-बड़ी सभी जातियाँ, यहाँ तक कि कई मुसलमान जातियों में भी इसका प्रचलन है।
Table of content
1) मृतक भोज की क्या आवश्यकता
2) ब्राह्मण और साधुओं को कब दिया जाय
3) दान का दुरुपयोग न हो
4) मृतात्मा के उपलक्ष में दान का उचित मार्ग
5) मरणोत्तर क्रिया की शास्त्रीय विधि
6) बड़प्पन की भावना बदले
7) मरणोत्तर क्रियाकर्म में अपव्यय
8) मृतक के लिए शोक करने का गलत तरीका
9) मृतक के परिवार की सहायता करें
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |