Preface
साधना का अर्थ है अपने आप को साधना जिन देवी देवताओं की साधना की जाती है, वस्तुतः अपनी ही विभूतियाँ एवं सत्प्रवृत्तियाँ है। इन विशेषताओं के प्रसुप्त स्थिति में पड़े रहने के कारण हम दीन दरिद्र बने रहते हैं किन्तु जब वे जाग्रत, प्रखर एवं सक्रिय बन जाती हैं, तो अनुभव होता है कि हम रिद्धि सिद्धियों से भरे पूरे हैं। मनुष्य की मूल सत्ता एक जीवंत कल्पवृक्ष की तरह है। ईश्वर ने उसे बहुत कुछ देकर संसार में भेजा है।
समुद्र तल में भरे मणि-मुक्ताओं की तरह मानवी सत्ता में भी असंख्य सम्पदाओं के भण्डार भरे पड़े हैं। किन्तु वे सर्वसुलभ नहीं हैं प्रयत्नपूर्वक उन्हें खोजना खोलना पड़ता है। जो इसके लिए पुरुषार्थ नहीं जुटा पाते वे खाली हाथ रहते हैं किन्तु जो प्रयत्न करते हैं उनके लिए किसी भी सफलता की कमी नहीं रहती इसी प्रयत्नशीलता का नाम साधना है।
Table of content
1. व्यक्तित्व को सुसंस्कारित बना लेना ही सच्ची साधना
2. साधना से सिद्धि का तत्वदर्शन
3. आत्मिक प्रगति हेतु आत्म-बोध की दैनिक साधना
4. साधना की सफलता में वातावरण की महत्ता
5. आत्मिक प्रगति का मूल आधार श्रद्धा
6. सद्गुरु की प्राप्ति एक दिव्य वरदान
7. महाप्रज्ञा की उपासना तत्वदर्शन और महात्मय
8. अध्यात्म उपचारों का तत्व ज्ञान
9. उपासना सम्बन्धी भ्रांतियां और उनका निवारण
10. संधि वेला की विशिष्ट साधना ध्यान धारणा
11. पात्रता एवं पूर्व स्थिति
Author |
Brahmavarchas |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
151 |
Dimensions |
182mmX120mmX3mm |