Preface
अनुमानों में कहाँ कितनी सत्यता है, कहा नहीं जा सकता। पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि मानवीय विधान की अपेक्षा ईश्वरीय विधान अधिक शक्तिशाली है। यहाँ न मनुष्य की भौतिक सामग्री साथ देती है और न बुद्धि कौशल। न तकनीक काम देती है और न विज्ञान। उसे जानने के लिए तो अपने जीवन के दृष्टिकोण को ही बदलना पड़ता है। अपनी तुच्छता स्वीकार करनी पड़ती है और महाकाल की महाशक्तियों पर विश्वास करना पड़ता है। जब इस तरह की ज्ञानबुद्धि जाग्रत होती है तो मनुष्य के कल्याण का मार्ग निकलने लगता है।
मानवीय सत्ता अनत आकाश की तरह सुविस्तृत है। उसके ऊँचे पटल क्रमशः धूल, धुंध और सघन भारीपन से युक्त होते हैं और अंततः वह स्टार आ जाता है, जिसमें ब्रह्मा के प्रकाश और प्रभाव को अधिक स्पष्टतापूर्वक देखा, समझा जा सके।
Table of content
1. जीवन के इस विस्तार में मनुष्य कहाँ
2. मनुष्य से भी महान कहीं कुछ है
3. अन्य ग्रहों पर उन्नत सभ्यताएं भी
4. जाने या ना जाने पर सच तो सच है
5. जन्म मरण और विकास का सर्वव्यापी चक्र
6. दिव्य लोकों से बरसने वाला शक्ति प्रवाह
7. क्षुद्रग्रह चले बड़े इठलाते
Author |
Pt. shriram sharma |
Edition |
2013 |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
120 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |