Preface
हमारी शरीर यात्रा जिस रथ पर सवार होकर चल रही है, उसके कलपुर्जे कितनी विशिष्टताएँ अपने अंदर धारण किये हुए हैं ? हम कितने समर्थ और कितने सक्रिय हैं ? इस पर हमने कभी विचार ही नहीं किया। बाहर की छोटी-छोटी चीजों को देखकर चकित हो जाते हैं और उनका बढ़ा-चढ़ा मूल्यांकन करते हैं, पर अपनी ओर अपने छोटे-छोटे कलपुर्जों की महत्ता की ओर कभी ध्यान तक नहीं देते। यदि उस ओर भी कभी दृष्टिपात किया होता, तो पता चलता कि अपने छोटे से छोटे अंग-अवयव कितनी जादू जैसी विशेषता और क्रियाशीलता अपने में धारण किए हुए हैं। उन्हीं के सहयोग से हम अपना सुरदुर्लभ मनुष्य जीवन जी रहे हैं। विशिष्टता मानवी काया के रोम-रोम में संव्याप्त है। आत्मिक गरिमा पर विचार करना पीछे के लिए छोड़कर मात्र कार्य संरचना और उसकी क्षमता पर विचार करें, तो इस क्षेत्र में भी कुछ अद्भुत दीखता है। वनस्पति तो क्या—पिछड़े स्तर के प्राणी—शरीरों में भी वे विशेषताएँ नहीं मिलतीं, जो मनुष्य के छोटे और बड़े अवयवों में सन्निहित हैं। कलाकार ने अपनी सारी कला को इसके निर्माण में झोंका है।
Table of content
• अद्भुत और बिलक्षण यह शरीर
• आंतरिक अवयव और भी विलक्षण
• ऐसी विलक्षणता और कहीं नहीं
• रोगों को हम ही निमंत्रित करते हैं
• स्वास्थ्य और दीर्घजीवन कैसे पाएँ?
• महापुरुषों की स्वास्थ्य-साधना
• न शरीर थकता है-न मस्तिष्क
• दीर्घजीवन-प्रकृति की आकांक्षा
• सहज सरल प्राकृतिक जीवन
• आहार संयम स्वास्थ्य की कंजी
• स्वास्थ्य-विज्ञान का निष्कर्ष
• आहार को विकृत न करें
• संयम साधें, दीर्घायु पाएँ
• क्या खाएँ ? कैसे खाएँ ?
• पेट को हल्का ही रखें
• उपवास भी आवश्यक
Author |
Pt. shriram sharma |
Publication |
yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
104 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |