Preface
ढलती उम्र का परम पवित्र कर्तव्य है- वानप्रस्थ ।। पारिवारिक जिम्मेदारियाँ जैसी ही हल्की होने लगें, घर को चलाने के लिए बड़े बच्चे समर्थ होने लगें और अपने छोटे भाई- बहिनों की देख−भाल करने लगें, तब वयोवृद्ध आदमियों का एक मात्र कर्तव्य यही रह जाता है कि वे पारिवारिक जिम्मेदारियों से धीरे- धीरे हाथ खींचे और क्रमशः वह भार समर्थ लड़कों के कन्धों पर बढ़ाते चलें ।। ममता को परिवार की ओर से शिथिल कर समाज की ओर विकसित करते चलें ।। सारा समय घर के ही लोगों के लिए खर्च न कर दें, वरन् उसका कुछ अंश क्रमशः अधिक बढ़ाते हुए समाज के लिए समर्पित करते चलें ।। धर्म और संस्कृति का प्राण- वानप्रस्थ संस्कार भारतीय धर्म और संस्कृति का प्राण है ।। जीवन को ठीक तरह जीने की समस्या उसी से हल हो जाती है ।। युवावस्था के कुसंस्कारों का शमन एवं प्रायश्चित इसी साधना द्वारा होता है ।।
गृहस्थ की जिम्मेदारियाँ यथा शीघ्र करके, उत्तराधिकारियों को अपने कार्य सौंपकर अपने व्यक्तित्व को धीरे- धीरे सामाजिक, उत्तरदायित्व, पारमार्थिक कार्यों में पूरी तरह लगा देने के लिए वानप्रस्थ संस्कार कराया जाता है ।
Table of content
1. बचपन का श्रम यौवन में लाभदायक
2. वृद्धावस्था और मरणोत्तर जीवन
3. तप और उसका वरदान
4. उच्चस्तरीय सुख के लिए उच्चस्तरीय तप
5. ढलती उम्र का तकाजा
6. वानप्रस्थ की पुण्य प्रतिक्रिया
7. कार्यपद्धति की रूपरेखा
8. धर्म व संस्कृति का प्राण
9. सुसंस्कार का सुनियोजन
10. लोक शिक्षण की आवश्यकता
11. यह पुण्य परंपरा पुनः सजीव हो
Author |
Pt shriram sharma acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |