Preface
गायत्री भारतीय धर्म-दर्शन की आत्मा है । उसे परम प्रेरक गुरुमंत्र कहा गया है । गुरु शिक्षा भी देते हैं और सामर्थ्य भी । गायत्री में सदृज्ञान की ब्रह्म चेतना और सतयोजन पूरा कर सकने की प्रचण्ड शक्ति भरी पड़ी है । इसलिए उसे ब्रह्मवर्चस् भी कहते हैं ।
गायत्री का उपास्य सूर्य-सविता है । सविता का तेजस सहस्रांशु कहलाता है । उसके सात रंग के सात अस्त्र हैं और सहस्र किरणें सहस्र शस्त्र गायत्री की सहस्र शक्तियाँ हैं । इनका उल्लेख-संकेत उसके सहस्र नामों में वर्णित है । गायत्री सहस्र नाम प्रख्यात है । इसमें अष्टोत्तर शत अधिक: प्रचलित हैं । इनमें भी चौबीस की प्रमुखता है । विश्वामित्र तन्त्र में इन चौबीस प्रमुख नामों का उल्लेख है । इन शक्तियों में से बारह दक्षिण पक्षीय हैं और बारह वाम पक्षीय । दक्षिण पक्ष को आगम और वाम पक्ष को निगम कहते हैं ।
Table of content
1. आद्यशक्ति गायत्री
2. ब्राह्मी
3. वैष्णवी
4. शाम्भवी
5. वेदमाता
6. देवमाता
7. विश्वमाता
8. ऋतम्भरा
9. मंदाकिनी
10. अजपा
11. ऋद्धि
12. सिद्धि
13. सावित्री
14. सरस्वती
15. लक्ष्मी
16. दुर्गा
17. कुण्डलिनी
18. प्राणाग्नि
19. भवानी
20. भुवनेश्वरी
21. अन्नपूर्णा
22. महामाया
23. पयस्विनी
24. त्रिपुरा
25. शक्तिधाराओं की साधनाओं का निर्धारण
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Edition |
2010 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |