Preface
अपनी संस्कृति में मनुष्य के दीर्घायुष्य की कामना करने का विधान है । दीर्घायुष्य की यह कामना किसलिए ? क्या केवल इसलिए कि मनुष्य सारा जीवन सांसारिक सुखोपभोग करता रहे और एक दिन राम नाम सत्य हो जाय ? नहीं, कदापि नहीं । भारतीय संस्कृति की आधारशिला भोगवाद नहीं अपितु कर्मवाद है । त्याग, तप, लोक संग्रह और लोक मंगल इस आधारशिला के चार सुदृढ़ स्तम्भ हैं । मनुष्य इस धरती का दोहन करने नहीं वरन् इसे जीवन के उच्चतम मूल्यों से सुसज्जित करने, सुषमामय बनाने के लिए जन्मा है । ऐसा मूल्य समन्वित, त्याग-तप-लोक संग्रह और लोक मंगल प्रेरित कर्मनिष्ठ जीवन मनुष्य जिए-दीर्घायुष्य की कामना में अन्तनिर्हित यही भावना है ।
आयु का विस्तार दीर्घ हो अथवा अल्प, काम्य दीर्घता अथवा अल्पता नहीं है, काम्य जीवन की सार्थकता है । जीवन की सार्थकता की उपलब्धि यदि मृत्यु के शीघ्र वरण से होती है तो वही वरणीय है । ऐसा ही जीवन स्पृहणीय है, अनुकरणीय है, श्लाघ्नीय है । वह जीवन नहीं जो दीर्घ होते हुए भी केवल पृथ्वी का भार बना हुआ है, जिसके बोझ से धरती माता धँसी-पिसी जा रही है । इसी सत्य का बोध कराने और केवल बोध ही नहीं अपितु जीवन में उसे उतारने, तदनुरूप जीवन ढालने के लिए ही इस संकलन में ऐसे महावीरों के जीवन की झाँकी दिखलाई गई है जिनको अपने अंक से लगाकर मृत्यु भी धन्य हो गई ।
Table of content
1. बन्दा वैरागी
2. धर्मवीर-हकीकत राय
3. तात्या टोपे
4. मंगल पाण्डे
5. जौरापुर का राजा-बालक
6. वासुदेव बलवंत फडके
7. लाला लाजपतराय
8. योगेन्द्रनाथ
9. गणेश शंकर विद्यार्थी
10. स्वामी श्रद्धानन्द
11. चापेकर बन्धु
12. चंद्रशेखर आजाद
13. सोहनलाल पाठक
14. रोशनलाल मेहरा
15. पं काशीराम जोशी
16. महावीर सिंह
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Edition |
2012 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
80 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |