Preface
हिन्दू धर्म, आदर्शवादी, सिद्धांतजीवी, संयमी तथा परमार्थी लोगों का धर्म है । इसके प्रणेता वे लोग है जिन्हें देवता और ऋषि की महिमामयी पदवी के लिए संबोधित किया जाता है और श्रद्धापूर्वक जिनके लिए समस्त संसार का मस्तक नत होता है । भारतीय धर्म की जितनी भी प्रणालियाँ, परम्पराऐं तथा विधि-व्यवस्थाऐं हैं, वे ऐसी हैं जो मनुष्य को देवत्व की ओर प्रेरित करती हैं । उन व्यवस्थाओं में यज्ञोपवीत का स्थान बहुत ऊँचा है, उस साधारण डोरे को निमित्त बनाकर हमारे प्रात: स्मरणीय ऋषियों ने मानव प्राणी के सम्मुख ऐसा तत्वज्ञान उपस्थित किया है, जिसकी जानकारी मात्र से उद्विग्न मस्तिष्कों में शांति का संचार होता है और उसका आचरण करने पर तो पृथ्वी पर स्वर्ग लोक के दृश्य उपस्थित हो सकते है ।
आज अनेक हिन्दू यज्ञोपवीत धारण करते हैं पर उसके तत्वज्ञान तथा माहात्म्य को नहीं जानते । इसी प्रकार गायत्री मंत्र को भी याद तो कर लेते हैं पर उसमें सन्निहित शिक्षा से अपरिचित रहते है । इस पुस्तक में उपवीत और गायत्री के संबंध में आवश्यक जानकारी का उल्लेख किया गया है जिसके आधार पर भारतीय जनता में द्विजत्व के प्रति आकर्षण बड़े और लोग पाशविक दृष्टिकोण से विमुख होकर मानवता को अपनाने के लिए अग्रसर हों । हमारा विश्वास है कि भारतीय जनता की आत्मिक उन्नति में यह पुस्तक अपनी महत्वपूर्ण सहायता देगी ।
Table of content
• यज्ञोपवीत के संबंध में शास्त्रीय दृष्टिकोण
• यज्ञोपवीत न धारण करने का दण्ड़
• यज्ञोपवीत संबंधी कुछ नियम
• न होने से कुछ होना अच्छा है ।
• पथ प्रदर्शक की आवश्यकता
• उपवीत और गायत्री का युग्म
• भूलोक का कल्पवृक्ष-यज्ञोपवीत
• उपवीत धारण में बिलम्ब क्यों ?
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Press, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |