Preface
जर्मन प्राणिशास्त्रवेत्ता हेकल लगभग एक शताब्दी पूर्व इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि सृष्टि क्रम विविध इकाइयों के सहयोग-संतुलन पर चल रहा है। जिस प्रकार शरीर के कलपुर्जे कोशिकाएँ और ऊतक मिल-जुलकर जीवन की गतिविधियों का संचालन करते हैं, उसी प्रकार संसार के विविध घटक एक-दूसरे के पूरक बनकर सृष्टि-संतुलन को यथाक्रम बनाये हुए हैं। यह अन्यान्योश्रय व्यवस्था सृष्टिकर्ता ने बहुत ही समझ-सोचकर बनाई है और आशा रखी है कि सामान्य उपयोग के समय मामूली हेर-फेरों के अतिरिक्त किसी के द्वारा इसमें भारी उलट-पलट नहीं की जाएगी।
Table of content
1. सह-अस्तित्व का नैसर्गिक नियम
2. मनुष्य पूरी तरह मशीन न बनें
3. साँस मत लो, इस हवा में जहर है
4. खबरदार इस पानी को पीना मत, खतरा है
5. चिल्लाइये मत, कान फट रहे है
6. रोगों की जडे़ काटी जाएँ, पत्ते नहीं
7. कीटनाशक, अंतत: अपने लिए घातक
8. धरती को मार डालने का कुचक्र
9. अनियंत्रित प्रगति अर्थात महामरण की तैयारी
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
112 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |