Preface
मनुष्य ईश्वर का उत्तराधिकारी एवं राजकुमार है। आत्मा परमात्मा का ही अंश है। अपने पिता के सम्पूर्ण गुण एवं वैभव बीज रूप से उसमें मौजूद हैं। जलते हुए अंगार में जो शक्ति है वही छोटी चिनगारी में भी मौजूद है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि मनुष्य बड़ी निम्न कोटि का जीवन बिता रहा है, दिव्य होते हुए भी दैवी सम्पदाओं से वंचित हो रहा है।
परमात्मा सत् है, परन्तु उसके पुत्र हम असत् में निमग्न हो रहे हैं। परमात्मा चित् है, हम अन्धकार में डूबे हुए हैं। परमात्मा आनन्द स्वरूप है, हम दुःखों से संत्रस्त हो रहे हैं। ऐसी उल्टी परिस्थिति उत्पन्न हो जाने का कारण क्या है ? यह विचारणीय प्रश्न है।
Table of content
1. गायत्री द्वारा संपूर्ण दुःखों का निवारण
2. गायत्री कथा-प्रसंगों में
3. गायत्री उपासना से ब्रह्मवर्चस् की प्राप्ति
4. गायत्री साधना से वेदज्ञान की प्राप्ति
5. ध्रुव को परम पद मिला
6. गायत्री उपासना के मूर्तिमान चमत्कार महात्मा आनन्द स्वामी
7. माधवाचार्य की वाणी सिद्धि
8. विद्यारण्य को प्रज्ञा प्राप्ति
9. गायत्री का आग्नेयास्त्र
10. काठिया बाबा की गायत्री साधना
11. उद्यड़ जोशी का अतीन्द्रिय ज्ञान
12. विद्या विभूषण मुकुटराम जी
13. गायत्री उपासना की सिद्धियाँ
14. गायत्री की तन्त्र-साधना
15. पूर्व जन्मों का ज्ञान
16. मृत्यु का पूर्व ज्ञान
17. इच्छा मृत्यु
18. गायत्री उपासना के सत्परिणाम सुनिश्चित हैं
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |