Preface
कैसी ही दु:खदायक और विषम परिस्थिति क्यों न आ जाय उत्साह सदैव हमारा सहायक सिद्ध होता है। संसार के इतिहास में जितने भी अमर, महापुरुष हुए हैं उनमें अपनी- अपनी तरह के धार्मिक, राजनैतिक, समाज सुधारक कैसे ही गुण और विशेषताएँ रही हों पर एक जो सबमें समान रूप से दिखाई देता है, वह है उत्साह ! उत्साह का अर्थ है अपनी मान्यताओं के प्रति दृढ़ता। हम जो कहते हैं, उसको कितने अंशों में पूरा कर सकते हैं, इससे उस कार्य के प्रति अपना विश्वास प्रकट होता है और उसी के अनुरूप प्रभाव भी उत्पन्न होता है। उत्साह कहने की नहीं करने की शैली का नाम है।
हमारी निराशा का बहुत कुछ कारण होता है यथार्थ को स्वीकार न करना, अपनी कल्पना और मनोभावों की दुनियाँ में रहना। यह ठीक है कि मनुष्य की कुछ अपनी भावनायें, कल्पनायें होती हैं, किन्तु सारा संसार वैसा ही बन जाएगा यह सम्भव नहीं होता। हाँ, अपनी भावनाओं के अनुकूल जीवन भर काम करते रहना अलग बात है। किन्तु दूसरे भी वैसा करने लगें, वैसे ही बन जाएँ यह कठिन है। यह ठीक उसी तरह है जैसे कि कोई व्यक्ति चाहे रात न हो केवल दिन ही दिन रहे या बरसात होवे नहीं।
Table of content
1. जीने का आनन्द उत्साह से मिलेगा
2. निराशा से दूर रहिए
3. निराशा जीवन का एक महान अभिशाप
4. अकारण दुःखी रहने की आदत
5. हम आशावादी बनें
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
24 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |