Preface
सभ्यता और शिष्टाचार का पारस्परिक संबंध इतना घनिष्ठ है कि एक के बिना दूसरे को प्राप्त कर सकने का ख्याल निरर्थक है ।। जो सभ्य होगा वह अवश्य ही शिष्ट होगा और जो शिष्टाचार का पालन करता है उसे सब कोई सभ्य बतलाएँगे ।। ऐसा व्यक्ति सदैव ऐसी बातों से बचकर रहता है जिनसे किसी के मन को कष्ट पहुँचे या किसी प्रकार के अपमान का बोध हो ।। वह अपने से मत भेद रखने वाले और विरोध करने वालों के साथ भी कभी अपमानजनक भाषा का प्रयोग नहीं करता ।। वह अपने विचारों को नम्रतापूर्वक प्रकट करता है और दूसरों के कथन को भी आदर के साथ सुनता है ।। ऐसा व्यक्ति आत्म प्रशंसा के दुर्गुणों से दूर रहता है और दूसरों के गुण की यथोचित प्रशंसा करता है ।। वह अच्छी तरह जानता है कि अपने मुख से अपनी तारीफ करना ओछे व्यक्तियों का लक्षण है ।। सभ्य और शिष्ट व्यक्ति को तो अपना व्यवहार बोल- चाल कथोपकथन ही ऐसा रखना चाहिए कि उसके सम्पर्क में आने वाले स्वयं उसकी प्रशंसा करें ।।
Table of content
1. सभ्यता और शिष्टाचार
2. भारतीय शिष्टाचार की विशेषतायें
3. शिष्टाचार और सदभावनायें
4. सहृदयता का महत्त्व
5. शिष्टाचार और सद्गुण
6. शिष्टाचार के सामान्य नियम
7. सामाजिक व्यवहार और स्वच्छता
8. खानपान और स्वास्थ्य रक्षा
9. बातचीत और रहन-सहन
10. वेशभूषा और चालढाल
11. शिष्टाचार की प्रवृत्ति स्वाभाविक है
12. शिष्टता मानवता का लक्षण है
13. शिष्ट एवं सभ्य व्यवहार ही मनुष्य की शोभा है
14. जीवन में शिष्टाचार की आवश्यकता
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12X18 cm |