Preface
जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी ने एकाकी, अपने ही बलबूते पर सफलता अर्जित कर ली हो, ऐसा बहुत कम देखने में आता है ।। आहार मनुष्य जीवन की नितांत सामान्य बात है, पर उसे जुटाने में भी कितने ही लोगों का सहयोग और साझेदारी अभीष्ट है इसे सभी जानते हैं ।।
कोई भी व्यक्ति अकेले गृहस्थ नहीं बसा सकता है, पति- पत्नी मिलकर ही उस अभाव की पूर्ति करते हैं ।। एक पहिए की गाड़ी नहीं चल सकती, अकेले धन या ऋण आवेश से विद्युतधारा प्रवाहित नहीं हो सकती ।। जीवन के लिए जल की आवश्यकता सभी समझते हैं; किंतु काम आग के बिना भी नहीं चल सकता ।। एक डाँड से नाव एक किनारे तो खड़ी की जा सकती है, पर नदी पार नहीं की जा सकती ।। जीवन का हर व्यापार साझेदारी की नीति पर बना हुआ है जिसमें पग- पग पर औरों के सहयोग की हर किसी को आवश्यकता पड़ती है ।।
बड़ी और महान उपलब्धियों में तो सहयोग की अपेक्षाएँ और भी सघन होती है ।। धर्मचक्र प्रवर्तन का महान कार्य गौतम बुद्ध ने पूर्ण किया, किंतु वह कार्य अधूरा पड़ा रहता यदि हर्षवर्धन ने आगे बढ़कर साझेदारी न निभाई होती ।। मान्धाता और शंकराचार्य, महाराणा प्रताप और भामाशाह, समर्थ रामदास और शिवाजी, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद की साझेदारी के पावन स्मारक और कृतियों अभी हजारों वर्षों तक भुलाए न भूलेंगी ।। अवतारों तक को यही नीति अपनानी पड़ी, राम के साथ लक्ष्मण का, श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन का, योगदान सभी जानते हैं ।।
Table of content
1. ईश्वर को पाना है तो हम उसकी मर्जी पर चलें
2. उपासना की सफलता सुनिश्चित साधना पद्धति पर निर्भर
3. उपासना का प्रयोजन और मूल-भूत आधार
4. भ्रांतियों से बचें सही पथ पर चलें
5. आत्मदेव की परिष्कृति से पात्रता की प्राप्ति
6. ईश्वर पर विश्वास अनिवार्य किसलिए
7. ईश्वर आराधना ही समस्याओं अन्तिम उपचार
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
64 |
Dimensions |
12X18 cm |