Preface
ब्रह्म को, आत्मा को, परमात्मा को प्राप्त करने की प्रणाली को ब्रह्मविद्या कहते हैं ।। इस ब्रह्मविद्या द्वारा मनुष्य अपने आप को परम शांतिपूर्ण अवस्था में ले पहुँचता है ।। उस ब्राह्मी स्थिति में पहुँचने पर आत्मा अपनी स्वाभाविक अवस्था को प्राप्त करके तेजपुंज बन जाता है ।। उसे लौकिक और पारलौकिक अनेक सिद्धियाँ भी उपलब्ध होती हैं ।।
योगी, महात्मा, संत, सत्पुरुष, ब्रह्मविद्या की सहायता से दैवी संपत्तियों को तथा परमानंदमयी परिस्थितियों को किस प्रकार प्राप्त करते हैं ?? इस रहस्य का इस पुस्तक में उद्घाटन- प्रकटीकरण किया गया है ।। विचारों की पवित्रता से, आत्मसाधना से तथा निराकुलता से आत्मशक्ति परिमार्जित एवं प्रचंड बनती है ।। ईश्वरीय अंशों के प्रविष्ट हो जाने से आत्मा में अनेक प्रकार की आश्चर्यजनक शक्तियाँ प्रस्कुटित होती हैं और उनके द्वारा सिद्धित्व प्राप्त हो जाता है ।।
कठोर तपस्याएँ करने पर नाना प्रकार के अलौकिक बल प्राप्त होते हैं, पर साधारण गृहस्थ जीवन बिताते हुए भी यदि विचारों को पवित्र, एकाग्र एवं शांत रखा जाए तो भी कितने ही लाभ होते हैं ।। इन लाभों को इस पुस्तक में अष्टसिद्धि और नवनिधि के रूप में उपस्थित किया गया है ।। ये लाभ भी इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि सांसारिक अन्य लाभों से इनकी तुलना नहीं की जा सकती ।।
ब्रह्मविद्या के लाभों को समझकर उसकी सरलता को देखकर तर्क और प्रमाणों से परिपूर्ण उसके वैज्ञानिक आधारों को देखकर, साधकों के अनेक भय और भ्रमों का निवारण होगा तथा वे इस पथ पर अग्रसर होने में अधिक तत्परता दिखाएँगे, ऐसी हमें आशा है ।।
Table of content
1. विचारों की पवित्रता और सुव्यवस्था के लाभ
2. ब्रह्मप्राप्ति के दो साधन
3. वैराग्य की विवेचना
4. गृह-त्याग क्यों
5. अपना स्वाभाव उत्तम बनाइये
6. सिद्धि के सिद्धांत
Author |
Pt. Shriram sharma |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12X18 cm |