Preface
देवियो, भाइयो! सांसारिक सुख-साधनों का संग्रह करने के लिए शारीरिक बल चाहिए । शरीर, जिसमें मन भी शामिल है, दोनों को अर्थात शरीर और मन को मिला देने से एक इकाई बनती है । हमारा मस्तिष्क एक ज्ञानेंद्रिय माना जाता है । यदि सांसारिक सुखों का सुख भोगना चाहते हैं, सुख-शांति इकट्ठी करना चाहते हैं तो आपको शारीरिक बल के साथ मन की सामर्थ्य को भी शामिल करना चाहिए । आपके शरीर में ताकत है, लेकिन अगर आपके दिमाग में डबल ताकत है तो आप बहुत-सा पैसा कमा सकते हैं, सुख-शांति इकट्ठी कर सकते हैं और उसका उपभोग भी कर सकते हैं । शरीर कमजोर होगा तो आप उपभोग भी नहीं कर सकते हैं । खा भी नहीं सकते हैं, देख भी नहीं सकते हैं, हजम भी नहीं कर सकते हैं । सब कुछ मौजूद है, पर आप कुछ नहीं कर सकते, कुछ नहीं पा सकते । अगर आपका शरीर और मन कमजोर है तो इस संसार में से आप सुख और शांति इकट्ठी नहीं कर सकते । सांसारिक सुख की अगर आपको आवश्यकता है, जिसको आप चाहते हैं तो आप शरीर को सामर्थ्यवान बनाइए और दिमाग को सामर्थ्यवान बनाइए ।
Table of content
1. शरीर की ताकत से मिलेगा सुख
2. विवेक से आती है खुशहाली
3. स्वर्ग और मुक्ति
4. बंधन लाते हैं दुःख
5. क्या है नरक और स्वर्ग
6. ललक लिप्साओं के बंधन
7. लोभ व मोह के फितूर
8. तीसरा बंधन "अहं"
9. "अहं" के ढकोसले
10. माया का जंजाल व मुक्ति का उपाय
11. सुखप्राप्ति का उपाय
12. विवेक मिले तो ही मिलेगी स्थायी शांति
13. सबसे बडी़ शक्ति है आत्मबल
14. करना नहीं ढलना
15. अपने आप से लडना ही तप
16. अपना आत्मबल बढाइए
17. बिना तप के प्राण नहीं जप में
18. कुसंस्कारों को बुहारिये
Author |
Pt. Shriram Sharma Aachrya |
Edition |
2010 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12X18 cm |