Preface
"हे इंद्र, तुम हमारे लिए गौओं को लाओ ।"
"दस सिर ताहि बीस भुज दंडा । रावन नाम वीर बरिबंडा ।।"
हमारे धार्मिक साहित्य में इस प्रकार के कथन अनेक स्थानों पर पढ़ने में आते हैं । देवताओं के स्वामी को गौएँ लाने के काम से क्या लेना देना? दस सिर वाला रावण किस मुँह से भोजन करता होगा, करवट लेकर कैसे सोता होगा ? ऐसे प्रश्न स्वाभाविक हैं, पर मालूम नहीं श्रद्धा की अधिकता रहती है या जिज्ञासा की कमी कि हम पाठकगण ऐसे प्रश्नों से सदा कतराते हैं । शायद हमें यह भय हो कि ऐसी जिज्ञासा करने से ईश्वर नाराज हो जाएँगे या हमारी श्रद्धा स्थिर नहीं रह पाएँगी । इसके कारण जो भी हों, पर यह सुनिश्चित तथ्य है कि ईश्वर जिज्ञासु से कभी अप्रसन्न नहीं होते । ऐसा होता तो इसी धर्म साहित्य में जिज्ञासुओं के प्रश्न और उनके समाधानों के उल्लेख नहीं मिलते । जिज्ञासा से ही सत्य का बोध होता है । भक्त को जिज्ञासु होना ही चाहिए तभी वह अपने मन की भ्रांतियों के कुहरे को हटाकर ईश्वर के गुणों एवं सामर्थ्यों की झलक पा सकेगा और ईश्वर के प्रति अपनी मान्यताओं को सुदृढ़ कर अपने चिंतन और व्यवहार को सुधार पाएगा । जिज्ञासा हमारी धर्म नौका की पतवार है जो ईश्वर की ओर हमारी यात्रा को मार्ग से विचलित हुए बिना पूरा कराती है ।
Table of content
1. आत्म निवेदन
2. त्रिपदा गायत्री की सूक्ष्म साधना
3. सब सिद्धियों का मूल अध्यात्म
4. समर्पण की प्रबल प्रेरणा
5. देवाराधन का तत्वदर्शन
6. इष्ट अर्थात जीवन लक्ष्य
7. ईश्वरीय सत्ता की न्याय व्यवस्था
8. राम और कृष्ण का अनुग्रह दर्शन
9. काश! दुर्गा जाग सके
10. समर्पण की साधना और सिद्धि
Author |
Pt. Lilapat Sharma |
Publication |
Yug Nirman Vistar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Vistar Trust, Mathura |
Page Length |
80 |
Dimensions |
12X18 cm |