Preface
शरीर का ही नहीं- आत्मा का भी ध्यान रखें
इस बात से जा भी इनकार नहीं किया जा सकता कि मानव जीवन में शरीर का महत्त्व कम नहीं है ।। शरीर की सहायता से ही संसार यात्रा संभव होती है ।। शरीर द्वारा की हम उपार्जन करते हैं और उसी के द्वारा हम सारी क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं ।। यदि मनुष्य को शरीर प्राप्त न हो, तो वह तत्व रूप से कुछ भी करने में समर्थ न हो ।।
यदि एक बार मानव- शरीर के इस महत्व को गौण भी मान लिया जाये, तब भी शरीर का यह महत्त्व तो प्रमुख है ही कि आत्मा का निवास उसी में होता है ।। उसे पाने के लिए किए जाने वाले सब प्रयत्न उसी के द्वारा सम्पादित होते हैं ।। सारे आध्यात्मिक कर्म जो आत्मा को पाने, उसे विकसित करने और बन्धन से मुक्त करने के लिए अपेक्षित
होते हैं, शरीर को सहायता से ही सम्पन्न होते हैं ।। अत: शरीर का महत्त्व बहुत है ।। तथापि जब इसको आवश्यकता से अधिक महत्त्व दे दिया जाता है, तब यही शरीर जो संसार बन्धन से मुक्त होने में हमारी एक मित्र को तरह सहायता करता है, हमारा शत्रु बन जाता है ।। अधिकार से अधिक शरीर को परवाह करने और उसकी इन्दियों की सेवा करते रहने से, शरीर और उसके विषयों के सिवाय और कुछ भी याद न रखने से वह हमें हर ओर से विभोर बनाकर अपना दास बना लेता है और दिन- रात अपनी ही सेवा में तत्पर रखने के लिए दबाव में आ जाने वाला व्यक्ति कमाने- खाने और विषयों को भोगने के सिवाय- इससे आगे की कोई बात सोच ही नहीं पाता ।। उसका सारा ध्यान शरीर और उसकी आवश्यकताओं तक ही केन्द्रित हो जाता है ।। वह शरीर और इन्दियों की क्षमता में बँधकर अपनी सारी शक्ति जिसका उपयोग महत्तर कार्यों में
किया जा सकता है, शरीर को सेवा में समाप्त कर देता है ।
Table of content
1. शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी ध्यान रखें
2. आत्मा वा अरे ज्ञातव्यः
3. आत्मज्ञान की आवश्यकता
4. चेतन आत्मा का चिन्तन
Author |
Brahmvarchas |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistara Trust |
Page Length |
48 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |