Preface
आत्मीयता की भावना को अभिव्यक्त करने के लिए दूसरों की सेवा-सहानुभूति, दूसरों के लिए उत्सर्ग का व्यावहारिक मार्ग अपनाना पड़ता है और इससे एक सुखद शांति, प्रसन्नता, संतोष की अनुभूति होती है । इस तरह आत्मीयता एक सहज और स्वाभाविक, आवश्यक वृत्ति है, जिससे मनुष्य को विकास, उन्नति, आत्म-संतोष की प्राप्ति होती है ।
Table of content
• सघन आत्मीयता:संसार की सर्वोपरि शक्ति
• पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
• आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
• साधना के सूत्र
• ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नही
Author |
Pt. Shriram sharma |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12X18 cm |