Preface
प्रत्येक कर्म का कोई अधिष्ठाता जरूर होता है ।। परिवार के वयोवृद्ध मुखिया के हाथ सारी गृहस्थी का नियन्त्रण होता है, मिलों- कारखानों की देख−रेख के लिए मैनेजर होते हैं, राज्यपाल- प्रान्त के शासन की बागडोर सँभालते हैं, राष्ट्रपति सम्पूर्ण राष्ट्र का स्वामी होता है ।। जिसके हाथ में जैसी विधि- व्यवस्था होती है उसी के अनुरूप उसे अधिकार भी मिले होते हैं ।। अपराधियों की दण्ड व्यवस्था, सम्पूर्ण प्रजा के पालन- पोषण और न्याय के लिये उन्हें उसी अनुपात से वैधानिक या सैद्धान्तिक अधिकार प्राप्त होते हैं ।। अधिकार न दिये जायें तो लोग स्वेच्छाचारिता, छल- कपट और निर्दयता का व्यवहार करने लगें ।। न्याय व्यवस्था के लिये शक्ति और सत्तावान होना उपयोगी ही नहीं आवश्यक भी है ।।
इतना बड़ा संसार एक निश्चित व्यवस्था पर ठीक- ठिकाने चल रहा है, सूरज प्रतिदिन ठीक समय से निकल आता है, चन्द्रमा की क्या औकात जो अपनी माहवारी ड्यूटी में रत्ती भर फर्क डाल दे, ऋतुयें अपना समय आते ही आती और लौट जाती हैं, आम का बौर बसन्त में ही आता है, टेसू गर्मी में ही फूलते हैं, वर्षा तभी होती है जब समुद्र से मानसून बनता है ।। सारी प्रकृति, सम्पूर्ण संसार ठीक व्यवस्था से चल रहा है, जो जरा सा इधर- उधर हुआ कि उसने मार खाई ।।
Table of content
1. सर्व शक्तिमान परमेश्वर और उसका सान्निध्य
2. मनुष्य महान है और उससे भी महान उसका भगवान
3. ईश्वर और जीव का मिलन संयोग
4. परमेश्वर के अजस्र अनुदान को देखें और समझें
5. ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति असम्मानित न हो
6. आत्मोत्कर्ष के लिए उपासना की अनवार्य आवश्यकता
7. उपासनाएँ सफल क्यों नहीं होती?
8. उपासना की सफलता साधना पर निर्भर
9. प्रार्थना का स्वरुप स्तर और प्रभाव
10. प्रार्थना का मतलब चाहे जो माँगना नहीं
11. ईश्वर प्राप्ति के लिए जीवन साधना की आवश्यकता
12. साधना का प्रयोजन और परिणाम
13. भगवान के लिए द्वार खोलें, स्थान बुहारें
14. सिद्धि और सिद्ध पुरुषों का स्तर
15. क्या मैं शरीर ही हूँ? उससे भिन्न नहीं?
16. आत्मबोध-आन्तरिक कायाकल्प-प्रत्यक्ष स्पर्श
17. जीवन पर दो प्रकृतियों की छाया
18. अपना स्वरूप, उद्देश्य और लक्ष्य समझें
19. मरण सृजन का अभिनव पर्व
20. मरण का सदा स्मरण रखें ताकि उससे डरना न पड़े
21. मृत्यु हमारे जीवन का अन्तिम अतिथि
22. अमृत और उसकी प्राप्ति
23. मृत्यु हमारे जीवन का अतिथि
24. मृत्यु से डरने का कोई कारण नहीं
25. मौत से न डरिए, वह तो आपकी मित्र है
26. मृत्यु से केवल कायर ही डरते हैं
27. मृत्यु की भी तैयारी कीजिए
28. अध्यात्म विकृत नहीं, परिष्कृत रूप में ही जी सकेगा
29. प्रगति और सफलता के लिए समर्थ सहयोग की आवश्यकता
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistar trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
168 |
Dimensions |
12 X 18 |