Preface
साधना के सिद्धांत को अत्युक्तिपूर्ण और अतिरंजित तभी कहा जा सकता है, जब उसमें से आत्म- परिष्कार के तथ्य को हटा दिया जाए और मात्र क्रिया- कृत्यों के सहारे चमत्कारी उपलब्धियों का सपना देखा जाए ।।
मानवी सत्ता में परमात्म सत्ता की सभी विशिष्टताएँ बीज रूप में विद्यमान हैं ।। इस अनुदान में स्रष्टा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र के प्रति अपने अनुग्रह का अंत कर दिया ।। इतने पर भी उसने इतना रखा है कि पात्रता के अनुरूप उन विशिष्टताओं से लाभान्वित होने का अवसर मिले ।। जिस पात्रता का परिचय देने पर सिद्धियों का द्वार खुलता है वह और कुछ नहीं जीवन परिष्कार के निमित्त प्रस्तुत की गई पुरुषार्थपरायणता भर है ।।
साधना विधानों में प्रयुक्त होने वाले क्रिया- कृत्य अगणित हैं ।। पर उन सबका मूल उद्देश्य एक है- जीवन के अंतरंग पक्ष को सुसंस्कृत और बहिरंग पक्ष को समुन्नत बनाना ।। जो साधना अपने विधि- विधानों के सहारे साधक को सुसंस्कारिता की दिशा में जितना अग्रसर कर पाती है वह उतनी ही सफल होती है ।।
Table of content
1. ब्रह्मवर्चस् उच्चस्तरीय गायत्री-साधना
2. उपयुक्त स्थल एवं वातावरण का महत्व
3. आत्म-शोधन के लिए तप-साधना अनिवार्य
4. जीवन-साधना का मार्ग
5. गायत्री अनुष्ठान का विज्ञान और विधान
6. पाप-निवृत्ति और पुण्य-वृद्धि के लिए चान्द्रायण
7. चांद्रायण व्रत की सौम्य साधना विधि
8. ब्रह्मवर्चस् साधनाओं के योगाभ्यास
9. उच्चस्तरीय साधना के दो सोपान-जप और ध्यान्
10. जप की पूर्णता ध्यान-साधना में
11. त्राटक साधना से दिव्य चक्षुओं का जागरण
12. अजपा गायत्री अर्थात् सोऽहं साधना
13. ब्रह्मरंध्र की साधना खेचरी मुद्रा
14. परम तेजस्वी शक्ति-संचार साधना
15. कुछ सहयोगी साधनाएँ
16. योग-साधना का संपुट-दैनिक अग्निहोत्र
17. नित्यकर्म में धर्म-भावना का समावेश
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistar trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
200 |
Dimensions |
12 X 18 |