Preface
गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है। वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है। माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला सााधक कभी निराश नहीं हुआ। इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं। गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है।
गायत्री वेदमाता हैं एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है। इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है। भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एकमात्र आश्रय गायत्री ही है। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु,कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं।
भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य-नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिए। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों, आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है। प्रस्तुत समय संधिकाल का है। आगामी वर्षों में पूरे विश्व में तेजी से परिवर्तन होगा। इस विशिष्ट समय में की गयी गायत्री उपासना के प्रतिफल भी विशिष्ट होंगे। युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री के तत्त्वदर्शन को जन-जन तक पहुँचाया व उसे जनसुलभ बनाया है। प्रत्यक्ष कामधेनु की तरह इसका हर कोई पयपान कर सकता है। जाति, मत, लिंग भेद से परे गायत्री सार्वजनीन है। सबके लिए उसकी साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है।
Table of content
1. श्री गायत्री चालीसा दोहा
2. आरती गायत्री जी की
3. स्तवन
4. एक तुम्हीं आधार सदगुरु
5. महाकाल स्तवन
Author |
Pt. Shriram Sharma Aacharya |
Publication |
Yug Nirman Yojana Vistar trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
48 |
Dimensions |
9 X 12 cm |