Preface
सरसरी दृष्टि से स्थूल शरीर- काय की समर्थता दो आधारों पर आंकी जाती है कि वह सुघड़- सुडौल हो और चेहरे पर सुन्दरता झलके ।। बाहर से इतना ही जाना जा सकता है ।। इसी जानकारी के आधार पर किसी को स्वस्थ सुन्दर सुदृढ़ एवं आकर्षक माना जाता है पर यह उथली परख है ।। गहराई में उतर कर वस्तुस्थिति परखने वालों को यह भी निरखना- परखना पड़ता है कि जीवनी शक्ति का समुचित भण्डार विद्यमान है या नहीं ।। भीतरी अवयव अपना ठीक काम करते हैं या नहीं ।। हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े, गुर्दे, जिगर, पाचनतंत्र, विसर्जन तंत्र के निमित्त काम करने वाले छोटे बड़े पुर्जे अपने- अपने काम को अंजाम दे सकने में समर्थ हैं या नहीं ।। मशीन का हर कल- पुर्जा यदि सही काम करे तो ही मशीन ठीक काम कर पाती है अन्यथा एक के भी गड़बड़ा जाने से ढाँचा लड़खड़ाने लगता है ।।
विकृतियाँ जब तक छोटे रूप में आरंभिक स्तर पर होती हैं तो उनकी पीडा़ प्रकट नहीं होती, किन्तु ईंधन में पड़ी चिनगारी धीरे- धीरे सुलगती रहती है और समयानुसार प्रचण्ड वेग धारण कर लेती है ।। घुन चुपके- चुपके शहतीर को खोखला करता रहता है और उसे धराशायी बना देने की स्थिति उत्पन्न कर देता है ।।
Table of content
1. अध्यात्म तत्वज्ञान का पहला अनुशासन
2. स्थूल और सूक्ष्म शरीर का समन्वय
3. स्थूल शरीर के विकास हेतु ध्वनि प्रयोग
4. सूक्ष्म शरीर और प्राणाकर्षण
5. प्राण विद्युत् का संवर्धन तेजोवलय का अभिवर्धन
6. कारण शरीर की विकासोन्मुख ध्यान-धारणा
7. समग्र साधना का व्यावहारिक स्वरुप
Author |
Pt. Shriram Sharma Aaachrya |
Publication |
Yug Nirman Yojana trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Press, Mathura |
Page Length |
40 |
Dimensions |
12 X 18 cm |