Preface
देवियो! भाइयो!! उपासना की महत्ता अपरंपार है । भगवान के नजदीक आप बैठें, उपासना करें, तो देखेंगे कि उनके सारे गुण आप में आते चले जाते हैं । बिजली को जो छूता है, तो उसके अंदर करेंट आ जाता है । भगवान को जो छुएगा, भगवान से उसमें करेंट आ जाएगा । दो तालाबों को आपस में जोड़ दें, तो नीचे वाले तालाब का लेबल बढ़ता हुआ चला जाता है और दोनों का तल एक हो जाता है । भगवान और भक्त एक हो जाते हैं । सच तो यह है कि भक्त भगवान से भी बड़े हो जाते हैं, क्योंकि भगवान भक्त का उत्साह बढ़ाना चाहते हैं और दूसरे कामों में उपयोग करना चाहते हैं । शबरी के जूठे बेर भगवान ने खाए थे न! गोपियों के यहाँ भगवान छाछ माँगने गए थे न! बलि के दरवाजे पर बावन अंगुल के बन करके भगवान गए थे न! कर्ण के दरवाजे पर सोना माँगने के लिए साधु और भिखारी का रूप बनाकर गए थे न! ये बड़प्पन है! भक्त का बड़प्पन!! पृगु ने भगवान के सीने में लात मारी थी, कहाँ कैसे भगवान हैं! जो अपने कर्त्तव्य का ध्यान नहीं रखते और भगवान ने महर्षि मृगु की लात के निशान को अपनी छाती पर अभी तक सुरक्षित रखा हुआ है । विष्णु की मूर्तियों में महर्षि भूगु की लात का निशान बना रहता है । महर्षि भूगु बड़े थे, भगवान से । भक्त बड़ा होता है भगवान से, पर सही भक्त होना चाहिए ।
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Publication |
Yug Nirman Trust, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
9 X 12 cm |