Preface
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत भारी उथल-पुथल भरी हुई। जहाँ एक युगनायक स्वामी विवेकानन्द ने महाप्रयाण किया, वहाँ प्रथम विश्वयुद्ध के बादल भी मँडराने लगे, परंतु भारत की तत्कालीन विपन्न परिस्थितियों में स्वतंत्रता के लिए लड़ाई कर रहे योद्धाओं के बीच एक ऐसे महामानव का आगमन हुआ, जिसे भारत राष्ट्र को ही नहीं, विश्व मात्र को ही नहीं बल्कि सारे युग को बदलने का कार्य विधि ने सौंपा था। औद्योगिक, वैज्ञानिक, आर्थिक क्रान्ति के बाद सारे भारत में आध्यात्मिक क्रान्ति-विचारक्रान्ति का बीजारोपण कर इस महान राष्ट्र को एक पौधशाला बनाने का कार्य जिस युग पुरुष द्वारा हुआ, उसी की एक जीवन-गाथा है यह। तीन खण्डों में समाप्त होने वाली चेतना की इस शिखर यात्रा को एक महानायक का एक संगठन की यात्रा का अभूतपूर्व दस्तावेज माना जा सकता है।
हिमालय अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र है। समस्त ऋषिगण यही से विश्वसुधा की व्यवस्था का सूक्ष्म जगत् से नियंत्रण करते हैं। इसी हिमालय को स्थूल रूप में जब देखते हैं, तो यह बहुरंगी-बहुआयामी दिखायी पड़ता है। उसमें भी हिमालय का हृदय-उत्तराखण्ड देवतात्मा देवात्मा हिमालय है। हिमालय की तरह उद्दाम, विराट्-बहुआयामी जीवन रहा है, हमारे कथानायक श्रीराम शर्मा आचार्य का, जो बाद में पं. वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ कहलाये, लाखों के हृदय सम्राट् बन गए। अभी तक अप्रकाशित कई अविज्ञात विवरण लिये उनकी जीवन यात्रा -उज्जवल भविष्य को देखने जन्मी इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी को- इसी आस से जी रही मानवजाति को समर्पित है।
Table of content
1. आत्मनिवेदन
2. भारत भाग्य विधाता
3. गंगा से यमुना तक
4. सत्यं परं धीमहि
5. भागवत भूमि का सेवन
6. अंकुर आने लगे
7. बलिहारी गुरु आपुनो
8. सिद्धि के मार्ग पर संकल्प
9. हिमालय से आमंत्रण
10. दीक्षा भूमि की यात्रा
11. स्वातंत्र्य यज्ञ में आहुति
12. आशीष और आश्वासन
13. परिक्रमा के पथ पर
14. विश्व जहाँ आश्रय पाये
15. महर्षि रमण के आश्रम में
16. निर्मलीकरण का पुरुषार्थ
17. तैयारियों का दौर
18. दक्षिण में प्रवास
19. नये आलोक का संकल्प
20. आलोक उद्घाटित हुआ
21. अभिभावक योग का आरंभ
22. प्रतिक्षा में खड़ा भविष्य
Author |
Dr.Pranav Pandya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
ISBN |
818255025 |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
408 |
Dimensions |
228mmX146mmX25mm |