Preface
"क्यों न आप एक बरफ बनाने का कारखाना चालू करें ? इसमें आजकल बड़ा लाभ है ।। पानी के रुपए बनते हैं ।"
श्यामबाबू को उनके मित्र निरंजन ने उपर्युक्त सलाह दी ।। श्यामबाबू अमीर पिता के बिगड़े हुए पुत्र हैं ।। उनके पास पिता की पूँजी है ।। किसी काम की तलाश में है ।। उनके चारों ओर मित्रों का ऐसा ही जमघट रहता है, जैसे गुड़ के चारों ओर मक्खियाँ ।।
श्यामबाबू निरंजन को अपना परम हितैषी समझते थे ।। वह उनके साथ रहता था ।। वे जहाँ कहीं मनोरंजन को जाते, सिनेमा, होटल या क्लब में निरंजन उनके पीछे चिपका रहता ।। लेकिन आखिर कुछ काम तो करना ही था ।। श्यामबाबू ने काफी पूँजी लगाकर बरफ का कारखाना चालू कर दिया ।।
"मैनेजर का काम मैं सँभालूँगा ।। इसमें हिसाब- किताब तथा हर बात में विशेष ध्यान देने की जरूरत है ।। हमें कारखाने को सफल बनाना है ।" निरंजन ने प्रस्ताव उपस्थित किया ।।
" हाँ हाँ तुम पर मेरा पूरा विश्वास है ।। तुमने समाज के नाना पहलू देखे हैं ।। सब कंट्रोल तुम्हारे हाथ में छोड़ता हूँ ।"
Table of content
1. दोस्ती गाँठने वालों के छिपे स्वार्थ
2. वह मुस्लिम रईसजादा
3. विश्वासघाती मित्र
4. प्रिंसीपल के आँसू की कहानी स्वयं की जुबानी
5. मित्र ने व्यसन सिखाया
6. मित्र के कारण ऋणग्रस्त हुए
7. रेडियो से वाल्ब गायब हुए
8. निकम्मे आदमियों से सावधान
9. कौन लोग अधिक दोस्त बनाते फिरते हैं
10. सच्चे मित्र विरले होते हैं
11. सच्चा मित्र कौन है ?
12. मित्रता ऐसे निभ सकती है
Author |
Pt. Shriram sharma acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
32 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |