Preface
व्यक्ति और समाज की मध्यवर्ती कड़ी परिवार है । वह दोनों ही क्षेत्रों को पोषण प्रदान करती है । हृदय, ऊपरी भाग मस्तिष्क, मुख एवं चेहरे के साथ जुड़ी हुई इंद्रियों को भी पोषण प्रदान करता है और नीचे के हिस्से में धड़ से जुड़े हुए अंग-अवयवों को भी । व्यावहारिक जीवन में परिवार को हृदय माना जाता है, जो अपने प्रत्येक सदस्य को परिष्कृत, परिपुष्ट बनाता है, साथ ही समाज को समुन्नत, सभ्य, समर्थ बनाने का कार्य भी करता है । इसे धड़ के हाथ-पैरों की सुरक्षा, सुव्यवस्था के समतुल्य समझा जा सकता है । इतना महत्त्वपूर्ण स्थान होते हुए भी आश्चर्य है कि परिवार को समग्र रूप से समुन्नत बनाने में न्यूनतम ध्यान दिया जाता है ।
घर के कमाऊ व्यक्ति गृहपति का स्थान ग्रहण करते हैं । इन्हें वरीयता इसी आधार पर मिली हुई होती है । उनका प्रधान पौरुष भी यही रहता है । इसलिए वे अर्थ प्रधान बन जाते है । परिवार को सुखी-समुन्नत बनाने के लिए वे आर्थिक साधनों से ही प्रयत्नरत रहते हैं । अच्छा भोजन, अच्छे वस्त्र, मनोरंजन के उपकरणों का बाहुल्य, महँगी पढ़ाई का प्रबंध, ठाट-बाट, शान-शौकत, खर्चीली शादियाँ आदि की योजनाएँ बनती और कार्यान्वित होती रहती हैं ।
Table of content
1. परिवार को संपन्न ही नहीं, सुसंस्कृत भी बनाएँ
2. सुधार परिवर्तन की सरल प्रक्रिया
3. परिवारों को प्रगतिशील बनाने के आधार
4. सुधार-विकास की पृष्ठभूमि बने
5. आकर्षण और विनोद का माहौल बनाने की आवश्यकता
6. श्रमशीलता एक सत्प्रवृत्ति
7. सादगी, संयम और मितव्ययिता
8. शिष्टता की उपयोगी रीति-नीति
9. सुव्यवस्था- एक रचनात्मक प्रवृत्ति
10. उदार सहकारिता
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2015 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
56 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |