Preface
सदभावनाएँ ही प्रसन्नता की जननी है । आन्तरिक पवित्रता, निर्ममता और स्वच्छता से प्रसन्नता सहज रूप में आती है । महापुरुषों की सतत् प्रसन्नता का कारण उनकी आन्तरिक पवित्रता एवं शुद्धता है । उनकी निर्मल हँसी से दुःखी एवं क्लेशयुक्त व्यक्ति प्रसन्न हुए बिना नहीं रहते । उनके आस-पास का वातावरण भी वैसा बना रहता है । इसीलिए प्रसन्नता प्राप्ति के उद्देश्य की पूर्ति तभी हो सकती है, जब अपना अन्तर स्वच्छ से स्वच्छतर बनता जायेगा । जब अपने आन्तरिक क्षेत्र में घृणा, अनुदारता, स्वार्थपरता के आवरण हटेंगे और सबके लिये प्रेम, सदभाव, उदारता उत्पन्न होंगे तो प्रसन्नता की संभावना भी निकटस्थ होती जायेगी ।
Table of content
1. सफलता दृढ़ आत्म विश्वास का ही प्रतिफल
2. प्रतिकूलतायें व्यक्तित्व को निखारती है
3. अपना विचार संसार स्वयं बनाये
4. चिन्ता कई रोगों को आमंत्रित करती है
5. बड़े विचित्र है, ये निद्रा के रोग
6. मुस्कान सौन्दर्य एवं स्वास्थ्य की जननी
Author |
Pt. Shriram Sharma Acharya |
Edition |
2014 |
Publication |
Yug nirman yojana press |
Publisher |
Yug Nirman Yojana Vistar Trust |
Page Length |
64 |
Dimensions |
12 cm x 18 cm |