Preface
भारतीय संस्कृति के आदर्शों को व्यावहारिक जीवन में मूर्तिमान करने वाले चौबीस अथवा दस अवतारों की श्रृंखला में भगवान राम और कृष्ण का विशिष्ट स्थान है। उन्हें भारतीय धर्म के आकाश में चमकने वाले सूर्य और चंद्र कहा जा सकता है। उन्होंने व्यक्ति और समाज के उत्कृष्ट स्वरूप को अक्षुण्ण रखने एवं विकसित करने के लिए क्या करना चाहिए, इसे अपने पुण्य-चरित्रों द्वारा जन साधारण के सामने प्रस्तुत किया है।ठोस शिक्षा की पद्धति भी यही है कि जो कहना हो, जो सिखाना हो, जो करना हो, उसे वाणी से कम और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने वाले आत्म-चरित्र द्वारा अधिक व्यक्त किया जाय। यों सभी अवतारों के अवतरण का प्रयोजन यही रहा है, पर भगवान राम और भगवान कृष्ण ने उसे अपने दिव्य चरित्रों द्वारा और भी अधिक स्पष्ट एवं प्रखर रूप में बहुमुखी धाराओं सहित प्रस्तुत किया है।
राम और कृष्ण की लीलाओं का कथन तथा श्रवण पुण्य माना जाता है। रामायण के रूप में रामचरित्र और भागवत के रूप में कृष्ण चरित्र प्रख्यात है। यों इन ग्रंथों के अतिरिक्त भी अन्य पुराणों में उनकी कथाएँ आती हैं। उनके घटनाक्रमों में भिन्नता एवं विविधता भी भी है। इनमें से किसी कथानक का कौन सा प्रसंग आज की परिस्थिति में अधिक प्रेरक है यह शोध और विवेचन का विषय है। यहाँ तो इतना जानना ही पर्याप्त है कि उपरोक्त दोनों ग्रंथ दोनों भगवानों के चरित्र की दृष्टि से अधिक प्रख्यात और लोकप्रिय हैं। उन्हीं में वर्णित कथाक्रम की लोगों को अधिक जानकारी है।
Table of content
१ ईश्वर के तीन स्वरुप निराकार, साकार और अवतार
२ भक्ति की महिमा
३ ईश्वर भक्ति और उसका स्वरूप
४ भक्त और भगवान का संबंध
५ माया-जाल से बंधन मुक्ति
६ ज्ञान और भक्ति की अभिन्नता
७ राम आध्यात्मिक प्रेरणा के स्रोत
८ गुणों की उपयोगिता और महत्ता
९ मन और बुद्धि का परिष्कार
१० संत और असंत-देव और दानव
११ सत्संग और कुसंग का फल
१२ मनुष्य जीवन का सदुपयोग
१३ गुरु का महत्व और स्वरूप
१४ धर्मिकता अर्थात कर्तव्य परायणता
१५ परोपकार उदार हृदय प्रतिकृति
१६ वाणी का शील और संतुलन
१७ शौर्य, साहस, पराक्रम एवं पुरुषार्थ
१८ कर्म और उसका प्रतिफल
१९ परिवार का विकास नीति निष्ठा के आधार पर
२० दांपत्य की महत्ता२१ पुरुष पत्निव्रत धर्म का पालन करें
२२ पति पत्नि की अनन्य एकता
२३ ससुराल पक्ष का शील और मर्यादा
२४ संतानोत्पादन की मर्यादा और जिम्मेदारी
२५ अभिभावकों और संतान के पारस्परिक कर्तव्य
२६ शिष्टाचार का अभ्यास बचपन से ही
२७ भाई भाईयों का स्नेह-सहयोग
२८ संस्कार और आश्रम-धर्म
२९ आदर्श समाज की स्थापना के लिए आदर्श लीलाएँ
३० राम की नीति-निष्ठा
३१ नागरिक कर्तव्यों का पालन
३२ सज्जनता, शालीनता
३३ सच्ची और झूठी मित्रता
३४ राम राज्य धर्म राज्य की शासन पद्धति
३५ श्रेष्ठ सामाजिक सत्प्रवृत्तियाँ
३६ धर्म स्थापना के लिए अनीति के विरुद्ध संघर्ष
३७ जन्म वंश से कोई ऊँच नीच नही
३८ धर्म क्षेत्र में अनाचार
३९ रामकथा का उद्देश्य और उपयोग
४० राम नाम परायण ही नहीं गुण परायण भी बनें
४१ सद्बुद्धि की अनिवार्यता और महत्ता
४२ विवेक युक्त हंसवृत्ति
४३ यज्ञीय संस्कृति का संरक्षण और प्रसार
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2011 |
Publication |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
208 |
Dimensions |
216mmX141mmX11mm |