Preface
नवसृजन के निमित्त आज जिसकी सर्वाधिक आवश्यकता अनुभव की जा रही है, उसे विद्या या मेधा नाम से जाना जाता है। इसके लिए विद्यालयों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। प्रत्यक्ष उदाहरणों को प्रेरणाप्रद माहौल सामने आए बिना समझा नहीं जा सकता कि विद्या क्या है व इसे कैसे जीवन में उतारा जाए? विभिन्न भाषाओं, संप्रदायों में बँटे ६०० करोड़ मनुष्यों को कैसे इस युगचेतना के प्रवाह से जोड़ा जाए, उसी का प्रारूप है संजीवनी विद्या का विस्तार।
गायत्री परिवार के सूत्र- संचालक ने ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका को अपनी संरचनात्मक सम्पत्ति माना है और पूरा विश्वास जताया है कि पच्चीस लाख पाठकों द्वारा पढ़ी या सुनी जाने वाली- विद्या करने वाली यह प्रक्रिया जन- जन तक पहुँचेगी। संजीवनी विद्या मूर्च्छना से उबारने हेतु ऋषि प्रणीत एक प्रयोग है। इसी महाविद्या को अनौचित्य से निपटने और औचित्य को सक्रिय करने हेतु नियोजित किया जाना है। संजीवनी विद्या के साथ जुड़ी आदर्शवादी उत्कृष्टता सीधे अंतःकरण में उतर जाती है। विद्या से विवेक उभरता है, व्यक्तित्व परिष्कृत होता है तथा प्रतिभा निखरती है। शालीनता इतनी ऊँची उठ जाती है, जिससे सामान्य आदमी भी देवमानव बन सके। जले हुए दीपक ही बुझों को जला सकते हैं- इस मान्यता को ध्यान में रख सृजन- साधकों के निर्माण हेतु बारह वर्षीय युगसंधि महापुरश्चरण का प्रावधान हुआ एवं इक्कीसवीं सदी के युगशिल्पियों के प्रशिक्षण हेतु शान्तिकुञ्ज में संजीवनी साधना के शिक्षण की विस्तृत व्यवस्था है।
Table of content
1. युगसाहित्य का सृजन, जिसे किए बिना कोई गति नहीं
2. एक लाख अध्यापकों द्वारा विद्या विस्तार का श्रीगणेश
3. संजीवनी विद्या को व्यापक बनाया जाए
4. महाविद्या का उदय और अभ्युदय
5. जले दीपक ही बुझों को जलाएँगे
6. मूर्च्छना का पुनर्जागरण अनिवार्य है
7. लोकमानस-परिष्कार का प्रशिक्षण
8. पंच दिवसीय साधना का स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप
Author |
Pandit Shriram Sharma Aacharya |
Edition |
2013 |
Publication |
Yug Nirman Yogana Vistrar Trust, Mathura |
Publisher |
Yug Nirman Yogana, Mathura |
Page Length |
32 |
Dimensions |
121mmX181mmX2mm |